शादी में इसलिए वर-वधू लेते हैं सात फेरे, जानिए हर वचन का खास मतलब

अग्नि को साक्षी मानकर अपनों के बीच वर-वधू सात फेरों के दौरान एक-दूसरे से जिंदगी भर साथ निभाने के साथ कई वचन लेते हैं और एक नए रिश्ते की शुरुआत करते हैं। हर एक फेरे के साथ वर-वधू एक-दूसरे को एक नया वचन देते हैं। जानिए हर वचन का खास मतलब।

By Manali Rastogi Last Updated: Dec 7, 2019 | 13:54:02 IST

हर लड़की चाहती है कि उसे अपने सपनों का राजकुमार मिले। जिंदगी में एक पड़ाव ऐसा आता है, जब ये सपना सच हो जाता है। अपने सभी सगे-संबंधियों और खास दोस्तों के सामने वर-वधू सात फेरे लेते हैं, जिनका हिंदू शादी में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। अग्नि को साक्षी मानकर अपनों के बीच वर-वधू सात फेरों के दौरान एक-दूसरे से जिंदगी भर साथ निभाने के साथ कई वचन लेते हैं और एक नए रिश्ते की शुरुआत करते हैं। हर एक फेरे के साथ वर-वधू एक-दूसरे को एक नया वचन देते हैं। ये वर-वधू के लिए खास पल होता है।

क्या होता है सात फेरे लेने का मतलब?

हिंदू धार्मिक ग्रंथों में सोलह संस्कार की बात की गई है, जिसमें से एक संस्कार है विवाह का। विवाह का शाब्दिक अर्थ होता है उत्तरदायित्व का वहन करना। अन्य धर्मों में विवाह एक करार होता है, जबकि हिंदू धर्म में यह जन्म-जन्मांतर का संबंध होता है, जिसको किसी भी परिस्थिति में तोड़ा नहीं जा सकता है। विवाह के समय वर-वधू अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारे को साक्षी मानकर तन, मन और आत्मा से एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में साथ फेरे लेने की रस्म को काफी महत्व दिया गया।

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सनातन धर्म की परंपरा के मुताबिक, विवाह संस्कार के दौरान वर-वधू के फेरे होते हैं और फेरों के दौरान भावी पति-पत्नी एक-दूसरे को सात वचन देते हैं। सात फेरों को सप्तपदी भी कहा गया है। इन सात फेरों को पति-पत्नी को जिंदगी भर निभाना होता है। मान्यताओं के अनुसार, सात फेरे किसी हिंदू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं।

पत्नी वामांग क्यों?

कई लोगों के मन में ये भी सवाल उठता है कि आखिर वधू वर के बायीं ओर ही क्यों बैठती है? दरअसल पति-पत्नी का रिश्ता काफी नाजुक होता है। यह विश्वास पर कायम रहता है। जैसे ताली एक हाथ से नहीं बज सकती, वैसे ही पति-पत्नी का रिश्ता भी एक की वजह से नहीं चल सकता। ऐसे में दोनों का एकसाथ काम करना और साथ में बढ़ना बेहद जरुरी है। कहते हैं पत्नी पति का आधा अंग होती है। इसलिए दोनों में कोई भेद नहीं होता।

मान्यताओं के अनुसार, पत्नी को पति के बायीं ओर इसलिए बैठाया जाता है क्योंकि पत्नी को वामांगी भी कहा गया है। वामांगी का मतलब होता है पति का बायां भाग। बता दें कि पुरुषों के दाएं और महिलाओं के बाएं हिस्से को शरीर विज्ञान और ज्योतिषों द्वारा शुभ माना गया है। महिलाओं का बायां हाथ ही हस्त ज्योतिष में भी देखा जाता है। मनुष्य के शरीर का बायां हिस्सा खासतौर पर मस्तिष्क रचनात्मकता का प्रतीक माना जाता है। दायां हिस्सा कर्म प्रधान होता है। यही वजह है कि जब सात वचन लिए जाते हैं तो हर वचन के बाद वधू कहती है कि ‘मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं’। इसक मतलब ये होता है कि वधू वर के बायीं ओर आने को तैयार है।

क्यों लिए जाते हैं सात फेरे?

होने वाले वर-वधू के साथ कई अन्य लोग ऐसे हैं, जिनके मन में ये सवाल आता है कि आखिर सात फेरे ही क्यों लिए जाते हैं। अगर आपके मन में भी सवाल आता है तो हम आपको इसका जवाब देंगे। मान्यताओं के अनुसार, मानव जीवन के लिए 7 की संख्या बहुत विशिष्ट मानी गई है। अगर आप भारतीय संस्कृति पर ध्यान देंगे तो आपको मालूम चलेगा कि भारतीय संस्कृति में संगीत के 7 सुर, इंद्रधनुष के 7 रंग, 7 ग्रह, 7 तल, 7 समुद्र, 7 ऋषि, सप्त लोक, 7 चक्र, सूर्य के 7 घोड़े, सप्त रश्मि, सप्त धातु, सप्त पुरी, 7 तारे, सप्त द्वीप, 7 दिन, मंदिर या मूर्ति की 7 परिक्रमा, आदि का उल्लेख किया गया है। यही वजह है कि हिंदू विवाह में फेरों की संख्या भी 7 है।

आइए जानते हैं इन सात वचनों का महत्व…

#1. पहला वचन

पहले वचन में कन्या वर से यह मांग करती है कि अगर वर कभी तीर्थयात्रा करने जाए तो उसे भी अपने साथ लेकर जाए। अगर वर कोई व्रत-उपवास या अन्य धार्मिक कार्य करे तो आज की भांति ही उसे बायीं ओर बिठाए। फिर कन्या वर से पूछती है कि अगर उसे यह स्वीकार है तो वो उनके वामांग में आना स्वीकार करती है।

#2. दूसरा वचन

दूसरे वचन में वधू वर से वचन लेती है कि जिस तरह वर अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, वैसे ही वो उनके भी माता-पिता का सम्मान करेंगे और परिवार की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर के भक्त बने रहेंगे। अगर आपको ये स्वीकार है तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

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#3. तीसरा वचन

कन्या तीसरे वचन में कहती है कि वर उसे वचन दे कि जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में वर उसका पालन करता रहे। अगर वह इसे स्वीकार करता है तो कन्या उसके वामांग में आना स्वीकार करती है।

#4. चौथा वचन

वधू चौथे वचन में ये कहती है कि अब आप विवाह के बंधन में बंधने जा रहे हैं तो ऐसे में परिवार की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति का पूरा दायित्व आपके कंधों पर होगा। अगर आप इस भार को संभालने में सक्षम हैं और इसे वहन करने की प्रतिज्ञा आप लेते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।  

#5. पांचवा वचन

अपने होने वाले वर से कन्या परिवार को सुखी बनाए रखने के लिए पांचवा वचन लेती है, जिसमें वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाह आदि, लेन-देन और किसी अन्य चीज पर खर्चा करते समय अगर आप मेरी भी राय लिया करेंगे तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।  

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#6. छठा वचन

कन्या छठवें वचन में कहती है कि अगर मैं किसी समय अपनी सहेलियों या अन्य महिलाओं के साथ बैठी रहूं तो आप किसी के सामने किसी भी वजह को लेकर मेरा अपमान नहीं करेंगे। इसके अलावा आप अपने आपको जुआ या किसी अन्य प्रकार की बुराइयों से दूर रखेंगे। अगर आप यह मानते हैं तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

#7. सातवां वचन

कन्या आखिरी और सातवें वचन के रूप में वर से यह मांग करती है कि वह पराई महिलाओं को अपनी मां सामान समझेंगे और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के बीच किसी को भागीदार नहीं बनाएंगे। अगर आप मुझे यह वचन देते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

हर धर्म में वर-वधुओं को लेकर अलग-अलग मान्यताएं होती हैं। मगर इन सबके पीछे का महत्व एक ही होता है और वो है कि दोनों ही एक-दूसरे के प्रति समर्पित रहें और एक-दूसरे का सम्मान करें। इन सभी वचनों का अर्थ है कि दंपति एक-दूसरे से प्यार तो करे ही, साथ में एक-दूसरे का सम्मान भी करें। इसके अलावा हर अच्छे और बुरे समय में एक-दूसरे को सहारा दें।

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