सरकारी नौकरी छोड़कर फिल्मों में आये थे अमरीश पुरी, बेटे को दी थी बॉलीवुड में न आने की सलाह

अमरीश पुरी ने लगभग फिल्मों में विलेन का रोल निभाया, लेकिन इसके बाद भी लोग उनसे प्यार करते थे। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि अमरीश पुरी की जिंदगी पर्दे के पीछे कैसी रही?

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By Deepali Srivastava Last Updated:

सरकारी नौकरी छोड़कर फिल्मों में आये थे अमरीश पुरी, बेटे को दी थी बॉलीवुड में न आने की सलाह

किसी अपने को खोना सबसे बुरा होता है, उसके जाने के बाद हमें सीखना पड़ता है उसके बिना रहना। उस शख्स की बातें, आवाज सब कुछ हम याद करते हैं और उसे हर जगह महसूस करते हैं। ऐसा ही कुछ साल 2005 में पूरे देश ने महसूस किया था, जब मशहूर अभिनेता अमरीश पुरी (Amrish Puri) ने दुनिया को अलविदा कहा था। दिग्गज अभिनेता अमरीश पुरी की भारी आवाज़ और उनकी पर्दे पर शानदार एक्टिंग आज भी लोगों के जेहन में बसी हुई है। अमरीश पुरी ने लगभग फिल्मों में विलेन का रोल निभाया, लेकिन इसके बाद भी लोग उनसे प्यार करते थे। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि अमरीश पुरी की जिंदगी पर्दे के पीछे कैसी रही और उन्होंने अपने आखिरी समय में अपने बेटे से क्या कहा था?

फिल्मों के लिए छोड़ दी थी सरकारी नौकरी

'मोगैम्बो' के नाम से मशहूर अभिनेता अमरीश पुरी के बारे में ये बेहद कम लोग जानते हैं कि उन्होंने सिनेमा में आने के लिए सरकारी नौकरी भी छोड़ दी थी। अमरीश पुरी को हमेशा से ही थिएटर करने का शौक था, लेकिन उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिले। फिल्मों में आने से पहले उन्होंने करीब 21 साल तक कर्मचारी बीमा निगम में बतौर क्लर्क काम किया। फिर एक दिन अमरीश की मुलाकात इब्राहिम अल्क़ाज़ी से हुई। इब्राहिम ने अमरीश को थिएटर के बारे में बताया और उन्हें थिएटर करने की सलाह दी। इसके बाद अमरीश की मुलाकात सत्येदव दुबे से हुई, जो उस वक्त बेहतरीन डायरेक्टर, एक्टर और राइटर थे। सत्यदेव भले ही अमरीश से उम्र में छोटे थे, लेकिन अमरीश ने उन्हें अपना गुरु माना और उनके साथ काम करना शुरू किया। साल 1971 में आई फिल्म 'रेशमा और शेरा' में अमरीश पुरी ने अपनी एक्टिंग का जलवा दिखाया और दर्शकों को उनकी एक्टिंग खूब पसंद आई। (ये भी पढ़ें: जब रणधीर-बबीता की शादी में पहुंचे थे शर्मिला और मंसूर अली खान पटौदी, सामने आई अनदेखी फोटो)

अमरीश ने बिना पलक झपकाए किया था लंबा नाटक

फिल्मों में काम करने का मन बना चुके अमरीश पुरी ने सत्यदेव दुबे के निर्देशन में बने नाटक में काम किया था। धर्मवीर भारती का लिखा ‘अंधा युग’ पर नाटक होना था और ये अमरीश की जिंदगी का पहला नाटक था, जिसमें अमरीश को धृतराष्ट्र का किरदार निभाना था लेकिन समस्या ये थी कि उन्हें अंधे बने रहने के दौरान लगातार आंखें खुली रखनी थी मतलब पलकें नहीं झपकानी थीं। 17 मिनट के इस नाटक में अमरीश के हिस्से में लंबे मोनोलॉग थे, लेकिन उन्होंने बिना एक भी डायलॉग भूले इस नाटक को बखूबी निभाया था। लोग ये देखकर हैरान रह गये थे कि 17 मिनट तक बिना पलकें झपकाए अमरीश ने ये कैसे कर लिया?

ऑनस्क्रीन खलनायक की ऐसी थी लव स्टोरी

पर्दे पर हमने अक्सर अमरीश पुरी को महिलाओं के साथ गलत व्यवहार करते देखा, लेकिन रियल लाइफ में अमरीश इससे एकदम उलट थे। यहां तक कि उनका कभी किसी महिला के साथ कोई अफेयर भी नहीं रहा। अमरीश पुरी ने उर्मिला दिवेकर से शादी रचाई थी और आखिरी समय तक उन्होंने उनका साथ दिया। दोनों के दो बच्चे राजीव और नम्रता हैं। अमरीश और उर्मिला की मुलाकात बीमा कंपनी में ही हुई थी और यहीं से दोनों के बीच प्यार हो गया था। लेकिन मुसीबत ये थी कि अमरीश पंजाबी थे और उर्मिला साउथ इंडियन। दोनों के घरवालों को ये रिश्ता मंजूर नहीं था।

लेकिन दोनों ने अपने परिवार के सदस्यों को मना लिया और साल 1957 में शादी रचाई। 'दैनिक जागरण' को दिए एक इंटरव्यू में अमरीश के बेटे राजीव ने बताया था कि, 'पापा भले ही खाने के ज्यादा शौकीन नहीं थे, लेकिन उन्हें मां के हाथों का खाना काफी पसंद था। घर में ज्यादातर कोंकण खाना बनता था और उन्हें ये बहुत पसंद था। पापा चावल पसंद नहीं करते थे लेकिन रोटियां खूब खाते थे। उन्हें मां के हाथों से बने संतुलित खाने की आदत ऐसी लगी थी कि अगर मुंबई में शूटिंग हो रही है, तो पापा कभी बाहर खाना नहीं खाते थे। खाना घर से ही सेट पर जाता था।' (इसे भी पढ़ें: आखिर क्यों मीना कुमारी की मौत पर नरगिस दत्त ने कहा था- 'मौत मुबारक हो', खुद किया था खुलासा)

अपने बेटे को दी थी फिल्मों में न आने की सलाह

अक्सर एक्टर और एक्ट्रेस के बच्चों को हम फिल्मों में काम करते हुए देखते हैं, लेकिन अमरीश पुरी के बेटे राजीव ने ऐसा नहीं किया। दरअसल, अमरीश जिनका फिल्मों में सितारा बुलंद था उन्होंने अपने बेटे राजीव को फिल्मों में आने से मना कर दिया था। जिसके पीछे वजह ये थी कि उस वक्त बॉलीवुड की स्थिति अच्छी नहीं थी और अमरीश नहीं चाहते थे कि उनका बेटा भी उनकी तरह कई सालों तक संघर्ष करता रहे। इसलिए उन्होंने अपने बेटे को फिल्मों में आने से मना किया था। राजीव ने 'बीबीसी' को दिए इंटरव्यू में बताया था कि, 'उस वक्त बॉलीवुड की स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए पापा ने मुझसे कहा कि यहां मत आओ और जो अच्छा लगता है वो करो। तब मैं मर्चेंट नेवी में चला गया।' अमरीश पुरी का बेटा भले ही फिल्मों में न आया हो, लेकिन उनका पोता हर्षवर्धन पुरी बॉलीवुड में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम कर रहा है। हर्षवर्धन ने 'इश्कज़ादे', 'शुद्ध देशी रोमांस' और 'दावते इश्क' में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया है।

इस फिल्म के बाद बन गये थे सबसे ज्यादा फीस लेने वाले एक्टर

फिल्म 'मिस्टर इंडिया' में मोगैम्बो के किरदार से अमरीश पुरी की एक अलग पहचान मिली। आज भी लोग उनके 'मोगैम्बो खुश हुआ' वाले डायलॉग को बोलते हैं। फिल्म में उनकी एक्टिंग भी लोगों ने खूब पसंद की और उसके बाद फिल्म इंडस्ट्री में अमरीश फिल्मों के लिए सबसे ज्यादा फीस लेने वाले एक्टर्स की लिस्ट में शामिल हो गये। आलम ये था कि जिस फिल्म में अमरीश विलेन के किरदार में होते थे वो फिल्म हिट हो जाती थी और इस वजह से उनकी फीस फिल्म के हीरो से भी ज्यादा होती थी। अमरीश पुरी ने अपने 40 साल के करियर में 450 से ज्यादा फिल्में की और लोगों ने उन्हें विलेन के रूप में काफी पसंद किया। (ये भी पढ़ें: सुरैया के साथ देव आनंद की मोहब्बत रह गई थी अधूरी, ये बात बनी थी रिश्ता खत्म होने की वजह)

अमरीश पुरी ने आखिरी समय में कही थी ये बात

अमरीश पुरी हमेशा ही अपने काम को लेकर काफी एक्टिव रहते थे और इस वजह से वो अपनी सेहत का ध्यान ज्यादा नहीं रखते थे। उनके बेटे राजीव ने मैगजीन 'फिल्मफेयर' को दिए इंटरव्यू में बताया था कि, 'पापा को मयेलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम हो गया था। दरअसल, हिमाचल प्रदेश में निर्देशक गुड्डू धानो की फिल्म 'जाल द ट्रैप' की शूटिंग के दौरान पापा का एक्सीडेंट हो गया था, जिसमें उन्हें गंभीर चोटें आई थीं। शरीर से ज्यादा खून बह जाने के कारण उन्हें ये सिंड्रोम हो गया था।' राजीव ने आगे बताया था कि, 'पापा को सिंड्रोम के कारण काफी कमजोरी हो गई थी और इस बीमारी का पता उन्हें साल 2003 में लगा था। इसके बाद 15 दिसंबर साल 2004 तक उन्होंने अपनी सभी फिल्में जैसे 'कच्ची सड़क','मुझसे शादी करोगे','हचलल','किसना' और 'ऐतराज' की शूटिंग पूरी कर ली थी।' 

राजीव ने आगे कहा था, 'पापा घर पर ही रहने लगे थे, लेकिन वो बेड पर हमेशा नहीं रहना चाहते थे। जब उनसे मैंने पूछा कि आप कैसे हैं? तो उन्होंने कहा कि मैं कल से बेहतर हूं। इसके बाद वो घर पर अचानक गिर पड़े और ब्रेन हैमरेज होने के कारण उनका 12 जनवरी 2005 को निधन हो गया।' अमरीश पुरी ने तमाम फिल्मों में काम किया है लेकिन उनकी खास फिल्में 'चाची 420', 'दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे', 'दामिनी', 'गर्दिश', 'गदर', 'घातक', 'घायल', 'हीरो', 'करण अर्जुन', 'कोयला', 'मेरी जंग', 'मि. इण्डिया', 'नगीना', 'फूल और कांटे', 'राम लखन', 'ताल', 'त्रिदेव' और 'विधाता' हैं।

आज भले ही अमरीश पुरी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका अभिनय, उनकी आवाज और उनके खास किरदार सभी के दिलों में बसे हुए हैं। तो आपको हमारी ये स्टोरी कैसी लगी? हमें कमेंट करके जरूर बताएं, साथ ही हमारे लिए कोई सलाह हो तो अवश्य दें।


(फोटो क्रेडिट: इंस्टाग्राम)
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