जानें उन भारतीय राजघरानों के बारे में, जिन्होंने आज भी संभाल रखी है अपने पूर्वजों की विरासत

प्रियांजलि कटोच, मीनल कुमारी सिंह देव, विदिता सिंह, यदुवीर सिंह से लेकर कृष्णा कुमारी तक, आइए एक नज़र डालते हैं प्रसिद्ध भारतीय राजघरानों पर, और जानें कि कैसे वे अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

By Shalini Bajpai Last Updated: Oct 14, 2021 | 10:05:12 IST

हम अक्सर बच्चों को सुनाते हैं, 'एक था राजा, एक थी रानी, दोनों मर गए खतम कहानी'। लेकिन आज हम ऐसे राजघरानों की बात करेंगे, जिनमें राजा और रानी तो जिंदा नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानी अभी तक खत्म नहीं हुई है। उनके परिवार के लोग आज भी उनकी विरासत को लेकर चल रहे हैं। हालांकि, 1971 में भारतीय संविधान के 26वें संशोधन ने हमारे देश में राजशाही को समाप्त कर दिया था, जिसके बाद से राजसी वर्ग भी धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर है। लेकिन कुछ भारतीय शाही परिवार अभी भी ऐश्वर्य के साथ, राजा की तरह जीवन जीते हैं।

21वीं सदी में भी शाही परिवार, लोगों से उतना ही सम्मान प्राप्त करते हैं, जितना पहले किया जाता था। हालांकि, वे आज के समय में एक मॉडर्न फैमिली की तरह जीवन जी रहे हैं। उन राजसी परिवारों की युवा पीढ़ी ने अपने पैतृक धन का उपयोग बिजनेस को बढ़ाने के लिए किया और उसी के जरिए अपने पूर्वजों की विरासत को बचाकर रखा है। यह सच है कि, हर कोई धनी पैदा नहीं होता है, लेकिन जो अपने परिवार द्वारा छोड़ी गई विरासत को आगे बढ़ाता है, वो अपने मूल्यों से ज्यादा धनवान होता है। पीढ़ियों के गुजरने के साथ, घर के युवा अपने पूर्वजों की विरासत को जीवित रखने व वैभव और संपत्ति को बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाते हैं। आइए आज हम आपको ऐसे भारतीय राजघरानों के बारे में बताते हैं, जो ज्यादा फेमस तो नहीं हैं, लेकिन वो अपनी विरासत को आज भी जीवित किए हुए हैं।

1. प्रियांजलि कटोच

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मंडावा कैसल का निर्माण सन 1755 में शेखावटी राजघराने के ठाकुर नवल सिंह द्वारा करवाया गया था। 1980 में यह किला एक लग्जरी होटल में तब्दील कर दिया गया और राजकुमारी प्रियांजलि कटोच, अपने परिवार के साथ इस होटल को चलाने में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। जब मनसा राज्य की राजकुमारी, दर्शन कुमारी ने मंडावा के ठाकुर केसरी सिंह से शादी की, तो उन्होंने 'श्री ताना बाना शिल्प प्रोजेक्ट' की शुरुआत की, जो मनसा की बुनाई परंपराओं को जीवित रखने के लिए, उनके दिमाग की उपज थी। उन्होंने इसे मंडावा के भित्तिचित्रों (दीवारों पर कलाकृति करना) के साथ मिला दिया। उन्होंने दो ट्रेडिशन को एक साथ लाकर अपनी बेटियों, टिहरी गढ़वाल की आर.के.गीतांजलि शाह और कांगड़ा लम्बरागांव की आर.के.प्रियांजलि कटोच की सहायता से इस परंपरा को जीवित रखा।

'द डेली गार्जियन' के साथ एक इंटरव्यू में, आर.के.गीतांजलि शाह ने बताया था, “मुझे हमेशा हमारे पूर्वजों द्वारा पहनी जाने वाली शिफॉन साड़ियां पसंद आती थीं, जिसमें बुना हुआ बॉर्डर होता था। मैं अपनी ट्राउसेउ (दुल्हन का साज-समान) के लिए ऐसी ही साड़ियां बनाना चाहती थी, क्योंकि बाजार में जो उपलब्ध था, उससे मैं पूरी तरीके से निराश थी। इसने दर्शन कुमारी को मनसा राज्य में अपने परिवार की पुरानी करघा परंपरा को वापस लेने में मदद की। आश्चर्य की बात यह है कि, इसमें 98 फीसदी सिल्वर वाले बार्डर बनाए गए थे। एक निजी प्रोजेक्ट के रूप में शुरू करने के बाद, इसे एक शिल्प परियोजना में बदल दिया गया। करघे बेकार पड़े थे, बुनकर शहर की ओर जा रहे थे। इस परियोजना ने उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। यह हमारे लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात है।"

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2. मीनल कुमारी सिंह देव

मीनल कुमारी सिंह देव, 200 साल पुरानी संपत्ति 'ढेंकनाल पैलेस' (ओड़िशा) की मालकिन हैं। इस पैलेस को अब हेरिटेज होमस्टे में बदल दिया गया है। मीनल कुमारी सिंह देव एक फैशन मूवमेंट को शसक्त बना रही हैं। ढेंकनाल पैलेस के आधिकारिक हैंडल पर, इसके इतिहास का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। इसके विवरण में लिखा है,“वर्ष 1529 में, राजपूताना की एक रियासत के तीन भाइयों ने उड़ीसा आने के लिए लंबी दूरी तय की थी। उस समय, पूरे राज्य का एक ही शासक था और उसने एक भाई को अपने प्रधानमंत्री के रूप में, दूसरे को अपने वित्त मंत्री के रूप में और तीसरे को अपनी सेना के प्रमुख के रूप में नियुक्त कर लिया था। शासक का तीसरा भाई इतना प्रतिष्ठित हुआ कि, उसे 'करमूल पटना' के नाम से जाना जाने वाला भूमि का एक हिस्सा दे दिया गया। इसे अब 'ढेंकनाल' कहा जाता है। ये शाही निवास सदियों पुराना है। कई पीढ़ियों ने समय की आवश्यकता के अनुसार यहां कमरों का एक समूह, एक मंदिर और बगीचा बनवाया है।''

ओड़िशा स्थित ढेंकनाल पैलेस का निर्माण महाराजा भगीरथ महिंद्रा बहादुर ने 19वीं शताब्दी के मध्य कराया था। 1990 में राजकुमार युवराज अमर ज्योति सिंह देव ने वांकानेर के महाराज कुमार रणजीत सिंह की बड़ी बेटी राजकुमारी मीनल कुमारी से शादी करने के बाद, उनके इस पैलेस को भविष्य के पर्यटन की संपत्ति के रूप में देखा।

'आउटलुक ट्रैवलर' के साथ एक इंटरव्यू में मीनल ने कहा था, "मैंने बचपन से विरासत या महल पर्यटन के उस पहलू को देखा था। हम भी इसका आनंद लेना चाहते थे। इसे, परिवार और मेहमानों के लिए बहाल करने के साथ-साथ, इसमें वित्तीय मजबूती की संभावना भी तलाश कर रहे थे, जो केवल पर्यटन ही दे सकता था। हमने पहले एक कमरा शुरू किया। प्रारंभ में, हमने कॉमन क्षेत्रों के अंदरूनी हिस्सों, छत की मरम्मत, बिजली का काम और नलसाजी जैसे कार्यों को पूरा करवाया। 150 साल से अधिक पुराने, पैतृक घर का नवीनीकरण करना एक नाजुक प्रक्रिया थी।''

चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताते हुए मीनल ने कहा, “हमें फर्श को कैरारा मार्बल से बनवाना था। टाइल्स, फिटिंग्स, लाइट्स और फ़र्नीचर सभी को, एक ही समय में सही से मिलाते हुए बनवाना था। जबकि भोजन कक्ष, बैठक कक्ष, उद्यान और पुस्तकालय जैसे भागों को पर्यटन को ध्यान में रखते हुए सुधार करवाकर शुरू किया। अतिथि कक्षों को ज्यादा सुधारने की जरूरत थी।''

उन्होंने कहा था, “ये मेरे दादाजी के भाइयों और उनके परिवारों के कब्जे वाले कमरे थे। जब उन्होंने अपने घर बनाए और बाहर चले गए, तो यह ब्लॉक खाली हो गया था और इसे बहुत मरम्मत और रखरखाव की जरूरत थी। न बिजली थी, न प्लंबिंग और न ही फर्नीचर। यह बंदरों का डेरा बन गया था। दो पुराने ड्रॉप शौचालय थे, जिन्हें हमने थोड़े से नवीनीकरण के साथ बरकरार रखा है। उन दिनों, ओड़िशा में बुनियादी ढांचा बहुत अधिक विकसित नहीं था, न ही यह एक नियमित पर्यटन स्थल था, लेकिन हमने किसी भी तरह इसको शुरू किया। अब यही हमारा घर था और इसकी देखभाल और रखरखाव का कार्य शुरू हो चुका था।''

3. राजकुमारी विदिता सिंह

बोरवानी शाही परिवार का प्रतिनिधित्व कर रहीं राजकुमारी विदिता सिंह ऑटोमोटिव कला में माहिर हैं। ऑटोमोटिव कला, जो कारों, नावों और अन्य ऑटोमोबाइल की पेचीदगियों को उजागर करती है। भारत की अग्रणी ऑटोमोटिव कलाकार होने के नाते, वह ऑटोमोटिव इतिहास और परंपरा को संरक्षित करने की आवश्यकता महसूस करती हैं। अपने पिता, महामहिम मानवेंद्र सिंह, जो एक प्रसिद्ध मोटर वाहन इतिहासकार हैं, की तरह वह भी अपने कैनवस पर पेंटिंग बनाती हैं। 'डीएनए' के साथ एक इंटरव्यू में, विदिता ने बताया था, "मैंने फाइन आर्टस में औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया है। मैंने खुद से सीखा है, लेकिन मैंने अपनी तकनीक में सुधार लाने और विभिन्न माध्यमों को समझने के लिए छोटा सा कोर्स किया है। मैंने 17 साल की उम्र में ऑटोमोटिव पेंटिंग बनानी शुरू की थी, इससे पहले मैं केवल फूलों, परिदृश्यों और घोड़ों की पेंटिंग बनाती थी। मेरे पिता ने मुझे अपने एक लेख को पढ़ने के लिए कहा। जहां फिएट कोर्स में एक महिला ड्राइविंग करते हुए दिखाई गई थी। उसी समय मैंने एक ऑटोमोटिव आर्टिस्ट बनने का फैसला किया।"

दिग्गज कांग्रेसी नेता दिनेश सिंह की पोती, राजकुमारी विदिता सिंह एकमात्र भारतीय महिला हैं, जिन्होंने 2018 में कैलिफोर्निया के पेबल बीच कॉनकोर्स में प्रतिष्ठित 'ऑटोमोटिव फाइन आर्ट्स सोसाइटी' में अपनी कला का प्रदर्शन किया था। 'डेली गार्जियन' से बातचीत में उन्होंने कहा था, “मेरा मानना है कि ऑटोमोबाइल पेटिंग को भी सजीव बनाया जा सकता है और मैं इसे अपनी कलाकृति में लाने की पूरी कोशिश करती हूं। कलाकृतियों में नॉस्टेल्जिया भी बड़ी भूमिका निभाता है और मैं हर ऑटोमोबाइल की सुंदरता को उसके सुनहरे दिनों में जीवंत करने की कोशिश करती हूं। ”

इसी प्रकार बेरा परिवार के वंशज, यदुवीर सिंह और पन्ना की राजकुमारी, कृष्णा कुमारी ने भी अपने राजघरानों की विरासत को सहेज कर रखा है। जिनका परिवार आज भी राजा की तरह जिंदगी जीता है। अपनी परंपराओं, संस्कृति और इतिहास को ध्यान में रखते हुए, शाही परिवारों की युवा पीढ़ी ने अपने पूर्वजों की विरासत को खतम नहीं होने दिया।

तो आज भी किसी न किसी रूप में उपस्थित इन भारतीय राजघरानों के बारे में जानकर आपको कैसा लगा? हमें कमेंट में बताएं, साथ ही कोई सुझाव हो तो अवश्य दें।

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