By Shivakant Shukla Last Updated:
प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी भगत सिंह को 'शहीद भगत सिंह' और 'शहीद-ए-आजम' की उपाधियों से भी जाना जाता है। उन्होंने 23 साल की उम्र में देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। भगत सिंह सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे, जिन्होंने अपने योगदान से देश को स्वतंत्रता दिलाई। ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या से लेकर, जेल में भूख हड़ताल पर जाने और 23 मार्च 1931 को शहीद होने तक, उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारत की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हालांकि, बहुत से लोग नहीं जानते कि, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह की 'पत्नी' का नाम दुर्गावती देवी था। चौंक गए ना! खैर, इससे पहले कि, आप आगे बढ़ें, यहां आपको भगत सिंह और दुर्गावती देवी के संबंध के बारे में जानने की जरूरत है। तो बिना किसी और हलचल के, चलिए सीधे आपको इस बारे में बताते हैं!
'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' (HSRA) के प्रमुख नेताओं में से एक भगत सिंह और उनके करीबी दोस्त और प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी शिवराम राजगुरु और सुखदेव ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के बाद दुर्गावती देवी के घर गए थे। हालांकि, सॉन्डर्स की मौत ने ब्रिटिश सरकार को झकझोर कर रख दिया था और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक नई आग को प्रज्वलित किया था। इन लोगों का प्लान जे.ए. स्कॉट को मारने की थी, जो प्रसिद्ध क्रांतिकारी लाला लाजपत राय के निधन के दोषी थे।
ब्रिटिश सरकार ने जॉन सॉन्डर्स की हत्या को हल्के में नहीं लिया था। उन्होंने तुरंत अपने सैकड़ों अधिकारियों को भगत सिंह और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को खोजने के लिए तैनात किया, जो इसमें शामिल थे। स्थिति की जटिलता को देखते हुए भगत सिंह ने कलकत्ता जाने के लिए लाहौर छोड़ने का फैसला किया था। हालांकि, उनके और उनके साथी क्रांतिकारियों के लिए लाहौर से भागना आसान नहीं था, क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने पूरे शहर को घेर लिया था। उस समय भगत सिंह और दुर्गावती देवी ने हाथ मिलाकर लाहौर से कलकत्ता भागने की योजना बनाई थी।
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भारतीय क्रांतिकारियों भगत सिंह और दुर्गावती देवी ने 17 दिसंबर 1928 को लाहौर से कलकत्ता के लिए प्रथम श्रेणी की ट्रेन में यात्रा करने का फैसला किया था। ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों के चंगुल से बचने के लिए भगत सिंह और दुर्गावती देवी ने पति-पत्नी की भूमिका निभाई थी। इतना ही नहीं, भगत सिंह ने एक एंग्लो-इंडियन का वेश बनाया था, जबकि दुर्गावती अपने तीन साल के बेटे को एक परिवार की तरह दिखने के लिए अपने साथ ले आई थीं। राजगुरु भी उनके साथ थे और उन्होंने उनके नौकर की भूमिका निभाई, क्योंकि भगत और दुर्गावती एक अमीर भारतीय जोड़े की भूमिका निभा रहे थे।
जब दुर्गावती देवी 11 साल की होने वाली थीं, तो उन्होंने सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में से एक और ए'चएसआरए' की एक प्रमुख सदस्य भगवती चरण वोहरा से शादी कर ली थी। अपनी शादी के कुछ वर्षों के बाद अपने जीवन में एक बच्चे का स्वागत करने के बाद कपल ने पितृत्व को अपनाया था। 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' के सभी सदस्यों ने उन्हें 'भाभी' कहकर भी बलुाते थे।
यह अविश्वसनीय है, जिस तरह से दुर्गावती देवी ने जॉन सॉन्डर्स की हत्या के बाद लाहौर से भगत सिंह को भागने में मदद की थी और कैसे उनके पति भगवती चरण वोहरा ने शहीद-ए-आज़म को उनके कई मिशनों में सहायता की थी। इस जोड़े ने बस भगत सिंह के जीवन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन यही कारण है कि, भगवती चरण वोहरा को आज भी उन कई लोगों में से एक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने उनके लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
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भगत सिंह के बाद शिवराम राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी की घोषणा कर दी गई। पूरा देश ब्रिटिश सरकार के प्रति क्रोध से भर गया था। जब कुछ लोग जेल के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, तो भगवती चरण वोहरा ने लाहौर सेंट्रल जेल पर बमबारी करके भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जेल से मुक्त करने के लिए चंद्र शेखर आज़ाद के साथ योजना बनाई थी।
हालांकि, गंगा नदी के तट पर बम के परीक्षण के दौरान चरण वोहरा का निधन हो गया था। यह एक ऐसी दिल दहला देने वाली दुर्घटना थी, जिसके बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई। हालांकि, अपने पति की मृत्यु के बावजूद दुर्गावती देवी (HSRA) की एक प्रमुख सदस्य बनी रहीं और साथी क्रांतिकारियों के साथ काम करती रहीं।
दुर्गावती देवी उन कुछ स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं, जो स्वतंत्र भारत में रहीं। हालांकि, राष्ट्र को अंग्रेजों से मुक्त होने के बाद दुर्गावती ने गाजियाबाद में शांति से रहना शुरू कर दिया था। लखनऊ में गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोलने से लेकर शहीद सोध संस्थान को अपनी जमीन दान करने तक, दुर्गावती ने अपने परिवार के साथ एक सादा जीवन व्यतीत किया। 15 अक्टूबर 1999 को 92 वर्ष की आयु में उम्र संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उनका निधन हो गया था।
दुर्भाग्य से, भगत सिंह के जीवन और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इतनी बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद दुर्गावती देवी के बारे में हर कोई नहीं जानता। हमें उम्मीद है कि, लोग अब तक के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक दुर्गावती देवी के बारे में जानेंगे, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपार वीरता के साथ लड़ाई लड़ी। तो आपको हमारी ये स्टोरी कैसी लगी? हमें कमेंट करके जरूर बताएं, साथ ही हमारे लिए कोई सलाह हो तो अवश्य दें।