मिलिए द्रौपदी मुर्मू से: पति और 2 बेटों को खोने से लेकर राष्ट्रपति बनने तक, संघर्षों से भरा रहा जीवन

झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनी हैं। यहां तक पहुंचने का उनका सफर काफी संघर्षों से भरा हुआ रहा है। आइए आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं।

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By Pooja Shripal Last Updated:

मिलिए द्रौपदी मुर्मू से: पति और 2 बेटों को खोने से लेकर राष्ट्रपति बनने तक, संघर्षों से भरा रहा जीवन

द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) देश की 15वीं राष्ट्रपति बन गई हैं। वह भारत की राष्ट्रपति बनने वाली दूसरी महिला और पहली आदिवासी महिला हैं। इससे पहले वह झारखंड की राज्यपाल के पद पर रह चुकी हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली 'राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन' की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हराकर ये जीत हासिल की है। द्रौपदी की जीत  की बात आज हर कोई कर रहा है, लेकिन इसके पीछे उनके संघर्ष की कहानी कोई नहीं जानता। 

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साल 2007 में द्रौपदी मुर्मू को ओडिशा विधान सभा से सर्वश्रेष्ठ विधायक (विधान सभा सदस्य) के लिए प्रतिष्ठित 'नीलकंठ पुरस्कार' मिला था। यह आदिवासी राजनेत्री के लिए बहुत गर्व का क्षण था। वास्तव में, जमीनी स्तर पर उनके प्रयास सभी को यह समझाने के लिए काफी थे कि, वह भारत की राष्ट्रपति बनने के लिए सही उम्मीदवार थीं। यहां जानें उनकी पूरी जर्नी के बारे में-

द्रौपदी मुर्मू का जीवन

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द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा गांव में एक संताली आदिवासी परिवार में हुआ था। द्रौपदी एक प्रभावशाली परिवार से ताल्लुक रखती थीं, क्योंकि उनके पिता और दादा पंचायत राज के तहत सरपंच थे। एक आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखने और अपने जीवन में पर्याप्त संसाधन न होने के बावजूद, द्रौपदी मुर्मू का ओडिशा के एक छोटे से गांव में रहने से लेकर भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने तक का सफर ऐतिहासिक और प्रेरित करने वाला है।

द्रौपदी मुर्मू की शिक्षा

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झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू 'रामादेवी महिला विश्वविद्यालय' की पूर्व छात्रा हैं। इन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद एक शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद वह राजनीति के क्षेत्र में आ गईं। रिपोर्ट्स की मानें, तो द्रौपदी मुर्मू हमेशा से एक प्रतिभाशाली और आज्ञाकारी छात्रा थीं। यही कारण है कि, वह अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद एक शिक्षिका बनीं।

'श्री अरबिंदो संस्थान' में एक शिक्षक के रूप में द्रौपदी मुर्मू का करियर

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भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रायरंगपुर के प्रसिद्ध 'श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट' में सहायक प्रोफेसर के रूप में भी काम किया है। कुछ समय तक सहायक प्रोफेसर के रूप में काम करने के बाद, द्रौपदी मुर्मू ओडिशा सरकार के सिंचाई विभाग में आ गईं। तभी उन्होंने अपने जीवन में पहली बार सरकारी क्षेत्र के कामकाज के बारे में जानना शुरू किया।

द्रौपदी मुर्मू के पिछले कार्यालय और राजनीतिक करियर

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द्रौपदी मुर्मू भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में साल 1997 में शामिल हुई थीं। इसके बाद जल्द ही उन्हें रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद के पद से सम्मानित किया गया। अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के साथ वह साल 2000 में रायरंगपुर पंचायत की अध्यक्ष बनीं। यही वह पल था, जब आदिवासी राजनेता ने भारतीय राजनीति में अपना नाम बनाना शुरू किया। जल्द ही उन्हें 'भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा' के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में पदोन्नत किया गया था। इसके बाद उन्होंने मार्च 2000 से अगस्त 2002 तक ओडिशा में वाणिज्य और परिवहन के स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया। इसके अलावा, द्रौपदी मुर्मू ने अगस्त 2002 से मई 2014 तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास में भी काम किया। 

झारखंड की राज्यपाल के रूप में द्रौपदी मुर्मू

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द्रौपदी मुर्मू 18 मई 2015 को झारखंड की राज्यपाल बनी थीं और यह उनके जीवन व भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, क्योंकि वह झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनीं। इसके अलावा, द्रौपदी ओडिशा राज्य की ऐसी पहली महिला आदिवासी नेता भी थीं, जिन्हें भारतीय राज्य के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था।

द्रौपदी मुर्मू के पति और बच्चे

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द्रौपदी मुर्मू की शादी श्याम चरण मुर्मू नाम के एक बैंकर से हुई थी। कपल ने तीन बच्चों, दो बेटों और एक बेटी का स्वागत किया था। सब कुछ सही चल रहा था और साल 2010 में द्रौपदी अपना एक सुखी वैवाहिक जीवन जी रही थीं, तब उन्होंने अपने एक बेटे को खो दिया था। इसके तीन साल बाद साल 2013 में उनके दूसरे बेटे की भी एक कार एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। दोनों बेटों के खोने का दुख द्रौपदी और उनके पति के लिए वास्तव में एक दिल दहला देने वाला था। द्रौपदी का दुख सिर्फ यहीं पर खत्म नहीं हुआ, उनके लिए जिंदगी तब बद से बद्तर हो गई, जब उन्होंने साल 2014 में अपने पति श्याम चरण मुर्मू को भी खो दिया। उनकी मृत्यु कार्डियक अरेस्ट की वजह से हुई थी, लेकिन तमाम दर्दनाक घटनाओं के बावजूद, द्रौपदी अपने दुख को भुलाकर अपने जीवन में आगे बढ़ीं और भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनने का मुकाम हासिल किया, जो हर किसी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। फिलहाल, वह अपनी बेटी के साथ रह रही हैं। 

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द्रौपदी मुर्मू को भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनते देखना अविश्वसनीय है। खैर, हमें भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की व्यक्तिगत और राजनीतिक यात्रा प्रेरणादायक लगती है। आपका इस बारे में क्या कहना है? हमें कमेंट करके जरूर बताएं, साथ ही हमारे लिए कोई सलाह हो तो अवश्य दें। 

(Picture Credit: Instagram)
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